आख़िरत

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

मुसलमान के लिये यह ज़रूरी है कि इस बात पर पक्का यक़ीन रखे कि यह दुनिया कुछ दिन का ठिकाना है यानि यह आरज़ी है और एक न एक दिन हमारी रुह इस जिस्म से अलग कर दी जाएगी और उसके बाद कभी न ख़त्म होने वाली ज़िंदगी मिलेगी जिसमें कुछ लोग ऐश और आराम में रहेंगे और कुछ लोग आग की लपटों के बीच तरह-तरह के अज़ाब में घिरे होंगे, और यह सब आराम या तकलीफ़ उनको उनके आमाल (कर्मों) के हिसाब से दिया जाएगा जो उन्होंने इस दुनिया में किये होंगें।

  • इस दुनिया में सबको एक तय किये हुए वक़्त तक रहना है, फिर मौत आनी है। मरने के बाद भी इंसान की रुह का रिश्ता जिस्म से रहता है और जो तकलीफ़ या आसानी होती है वो रुह महसूस करती है।
  • हर इंसान से क़ब्र में दो फ़रिश्ते आकर सवाल करते हैं, जिनका नाम मुनकर और नकीर है। उनकी शक्ल बहुत ही डरावनी होती है। जो लोग उनके सवालों का जवाब सही देते हैं, उनको आराम मिलता है और जो जवाब नही दे पाते उन पर अज़ाब। जिस्म चाहे जल जाये, गल जाये,पानी में डूब जाये या कोई जानवर खा ले, हर हाल में उससे सवाल होते हैं।
  • मरने के बाद रूहों को आलम-ए-बरज़ख़ (रूहों के रहने की जगह) में भेज दिया जाता है जहाँ पर उनके आमाल के मुताबिक़ अलग-अलग दर्जे दिये जाते हैं। लेकिन रूहों का तआल्लुक़ अपने जिस्मों से रहता है।
  • मुसलमान को ये अक़ीदा कभी नही रखना चाहिये कि रुह किसी दूसरे आदमी या जानवर के जिस्म में चली जाती है, या ‘पुर्नजन्म’ होता है, यह मानना कुफ़्र है।
  • मौत के बाद रुह सिर्फ जिस्म से अलग होती है उसको मौत नहीं आती। रुह की मौत या फ़ना मानना ग़लत अक़ीदा है।
  • अल्लाह तआला के ख़ास बंदों जैसे अंम्बियाے, शोहदा-ए-किराम और औलिया-ए-किराम के जिस्मों को मिट्टी नही खाती, अगर इनके लिये कोई कहे कि नाऊज़ुबिल्लाह ‘मर कर मिट्टी हो गए’, तो वह गुमराह और बद्दीन है।

क़यामत और उसके बाद

  • हमारे लिये यह मानना भी हमारे ईमान का हिस्सा है कि क़यामत बरपा होगी और सारी दुनिया और उसकी सारी चीज़ें ख़त्म हो जाएंगीं।
  • आसमान, ज़मीन, चाँद, सितारे यहाँ तक कि फ़रिश्ते भी ख़त्म हो जायेंगे। उस वक़्त सिवाय अल्लाह के कोई नहीं होगा। फिर अल्लाह सब चीज़ों को दोबारा पैदा करेगा।
  • सबसे पहले हमारे प्यारे नबीگ अपनी क़ब्र-ए-अनवर से बाहर आएंगें और फिर मरतबे के हिसाब से सब अपनी-अपनी क़ब्रों से बाहर आएंगे और हश्र के मैदान में जमा होंगे।
  • हश्र में रूहें अपने जिस्मों में लौटा दी जायेंगी।
  • वह दिन बहुत सख़्ती का होगा, गर्मी से दिमाग़ खौलते होंगे और प्यास से सब बेहाल होंगे।
  • जब लोग उस सख़्ती से परेशान होंगे तो एक-एक करके नबियों के पास जायेंगे लेकिन कोई भी सिफ़ारिश के लिए तैयार नहीं होगा, तब हमारे प्यारे नबी मुहम्मदگ , अल्लाह तआला से सिफ़ारिश करेंगे कि हिसाब-किताब शुरू किया जाए। हमारे प्यारे नबी گ की यह शफ़ाअत (सिफ़ारिश) आम होगी और सब लोगो को इससे राहत मिलेगी।
  • हर एक का आमाल नामा उसके हाथ में दे दिया जाएगा जिसमें उसका किया हुआ छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा काम लिखा हुआ होगा।
  • मुसलमान के लिए यह अक़ीदा रखना भी ज़रूरी है कि मैदान-ए-महशर में मिज़ान होगा जिस पर लोगों के आमाल तोले जायेंगे 
  • कुछ लोगों को उनके आमाल के मुताबिक़ सज़ा काटने के लिये दोज़ख़ में डालने का हुक्म दिया जाएगा।
  • काफ़िरों के लिये हमेशा- हमेशा के लिये दोज़ख़ है और उन पर अज़ाब भी हल्का नही किया जाएगा।
  • फिर सब लोगों को पुल सिरात पर चलने का हुक्म होगा जो बाल से भी बारीक और तलवार से ज़्यादा तेज़ है।
  • अच्छे और नेक आमाल वाले लोग इस पर आसानी से गुज़र कर जन्नत में चले जायेंगे और बुरे आमाल वाले लोग दोज़ख़ में गिर जायेंगे।
  • मैदान-ए-महशर में हौज़़-ए-कौसर भी है जिसमें ख़ूब ठंडा, दूध से ज़्यादा सफेद और शहद से ज़्यादा मीठा पानी होगा और हमारे प्यारे नबी मुहम्मदگ इसे अपने नेक आमाल वाले उम्मतियों को पिलाएंगे।
  • हर मुसलमान को यह ईमान रखना ज़रूरी है कि जन्नत को अल्लाह तआला ने ईमान वालों के लिये बनाया है जिसमें महल, बाग़ और तरह-तरह की नेअमतें हैं कि जिन्हें न किसी कान ने सुना और न ही किसी आँख ने देखा। इसमें लोगों को उनके आमाल के मुताबिक़ अलग-अलग दर्जों में रखा जायेगा।
  • यह ईमान रखना भी ज़रूरी है कि अल्लाह तआला ने दोज़ख़ को बनाया है जो आग का कुआँ है और इसके अलावा इसमें तरह-तरह के अज़ाब दिये जायेंगे। इसको काफ़िरों के लिये तैयार किया गया है।

हर मुसलमान को चाहिये कि अल्लाह तआला से जन्नत हासिल करने की दुआ करे और दोज़ख़ से पनाह माँगे और उसी के मुताबिक़ अमल भी करे

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